रविवार, 30 जनवरी 2011

26 January Republic Day Special

हिंदुस्तान के 62 वे गणतंत्र दिवस पर हिंदुस्तान न्यूज़ की विशेष प्रस्तुति "वन्दे मातरम " ---(संवाददाता - सरिता यदु / कैमरावर्क - डागेश्वर प्रसाद साहू / एडिटर - भानु वर्मा  )
PART -1

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  PART -2

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PART- 3
                                       
(संवाददाता - सरिता यदु / कैमरावर्क - डागेश्वर प्रसाद साहू / एडिटर - भानु वर्मा  )

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चैतुरगढ़

मैकल पर्वत श्रेणी में स्थित चैतुरगढ़ को "छत्तीसगढ़ के काश्मीर" के नाम से जाना जाता है। समुद्रतल से इसकी ऊँचाई 3060 फीट है। यह मैकल पर्वत श्रेणी के उच्चतम चोटियों में से एक है। चैतुरगढ़ का क्षेत्र अलौकिक गुप्त गुफा, झरना, नदी, जलाशय, दिव्य जड़ी-बूटी तथा औषधीय वृक्षों से परिपूर्ण है। ग्रीष्म ऋतु में भी यहां का तापमान 30 डिग्री सेन्टीग्रेट से अधिक नहीं होता। अनुपम छटाओं से युक्त यह क्षेत्र अत्यन्त दुर्गम भी है।

ऐतिहासिक स्थान पाली, जो कि बिलासपुर कोरबा रोड पर 50 किलोमीटर दूर पर है, से लगभग 125 किलोमीटर दूर लाफा है जहाँ से चैतुरगढ़ 30 किलोमीटर ऊंचाई पर स्थित है।

आदिशक्ति माता महिषासुर मर्दिनी का मंदिर, शंकर खोल गुफा आदि चैतुरगढ़ के दर्शनीय एवं रमणीय स्थल हैं। अद्वितीय सौदर्य से युक्त चामादहरा, तिनधारी और श्रृंगी झरना इस पर्वत श्रृंखला में ही स्थित हैं। यह जटाशंकरी नदी का उद्गम स्थल भी है। जटाशंकरी नदी के तट पर तुम्माण खोल नामक प्राचीन स्थान है जो कि कलचुरी राजाओं की प्रथम राजधानी थी।

गुरुवार, 20 जनवरी 2011

२६ जनवरी विशेष

भारत जब आजाद हुआ तो देशवासियों की सुखा-शांति  के लिए एक सुचारू व्यवस्था की जरुरत थी | इसके लिए कुछा जाने -माने लोगो ने सविधान बनाया,जो २६ जनवरी,१९५० को लागु हुआ | छोटा हो या बड़ा, हर किसी को हमारे देश के सविधान ने कुछ अधिकार दिए,ताकि वह सही ढंग से जी सके उसका हर तरह से विकास हो | इन अधिकारों के साथ यह भी जरुरी है, देश के प्रति हमारे जो कर्तव्य है, उन्हें हम निभाए | इससे देश मजबूत बनता है |

बुधवार, 19 जनवरी 2011

स्वतंत्रता के महानायक_सुभाषचन्द्र बोस

23 जनवरी 1897 का दिन विश्व इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इस दिन स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक सुभाषचन्द्र बोस का जन्म कटक के प्रसिद्ध वकील जानकीनाथ तथा प्रभावतीदेवी के यहाँ हुआ। उनके पिता ने अँगरेजों के दमनचक्र के विरोध में 'रायबहादुर' की उपाधि लौटा दी। इससे सुभाष के मन में अँगरेजों के प्रति कटुता ने घर कर लिया। 

अब सुभाष अँगरेजों को भारत से खदेड़ने व भारत को स्वतंत्र कराने का आत्मसंकल्प ले, चल पड़े राष्ट्रकर्म की राह पर। आईसीएस की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद सुभाष ने आईसीएस से इस्तीफा दिया। इस बात पर उनके पिता ने उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- 'जब तुमने देशसेवा का व्रत ले ही लिया है, तो कभी इस पथ से विचलित मत होना।' 


ND
दिसंबर 1927 में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव के बाद 1938 में उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने कहा था- मेरी यह कामना है कि महात्मा गाँधी के नेतृत्व में ही हमें स्वाधीनता की लड़ाई लड़ना है। हमारी लड़ाई केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद से नहीं, विश्व साम्राज्यवाद से है। धीरे-धीरे कांग्रेस से सुभाष का मोह भंग होने लगा। 

16 मार्च 1939 को सुभाष ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। सुभाष ने आजादी के आंदोलन को एक नई राह देते हुए युवाओं को संगठित करने का प्रयास पूरी निष्ठा से शुरू कर दिया। इसकी शुरुआत 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर में 'भारतीय स्वाधीनता सम्मेलन' के साथ हुई। 5 जुलाई 1943 को 'आजाद हिन्द फौज' का विधिवत गठन हुआ। 21 अक्टूबर 1943 को एशिया के विभिन्न देशों में रहने वाले भारतीयों का सम्मेलन कर उसमें अस्थायी स्वतंत्र भारत सरकार की स्थापना कर नेताजी ने आजादी प्राप्त करने के संकल्प को साकार किया।

12 सितंबर 1944 को रंगून के जुबली हॉल में शहीद यतीन्द्रदास के स्मृति दिवस पर नेताजी ने अत्यंत मार्मिक भाषण देते हुए कहा- 'अब हमारी आजादी निश्चित है, परंतु आजादी बलिदान माँगती है। आप मुझे खून दो, मैं आपको आजादी दूँगा।' यही देश के नौजवानों में प्राण फूँकने वाला वाक्य था, जो भारत ही नहीं विश्व के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। 

16 अगस्त 1945 को टोक्यो के लिए निकलने पर ताइहोकु हवाई अड्डे पर नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और स्वतंत्र भारत की अमरता का जयघोष करने वाला, भारत माँ का दुलारा सदा के लिए, राष्ट्रप्रेम की दिव्य ज्योति जलाकर अमर हो गया।

बुधवार, 12 जनवरी 2011

स्‍वामी विवेकानंद जयंती (राष्‍ट्रीय युवा दिवस) पर एक प्रेरक प्रसंग

आज भारत के युवाओ के पथ प्रदर्शक महान दार्शनिक व चिंतक स्‍वामी विवेकानंद की जयंती है, आज के दिन भारत मे राष्‍ट्रीय युवा दिवस के रूप मे मनाया जाता है। स्‍वामी जी बातें युवाओ मे जोश और उम्मीद की नयी किरण पैदा करती है। युवाओ मे आज के दौर मे जहाँ जिन्‍दगी खत्‍म होने जैसी लगती है वही स्‍वामी के साहित्‍यों के संगत मे आकर एक नयी रौशनी का एहसास होता है।सन्‌ 1893 में शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन 'पार्लियामेंट ऑफ रिलीजन्स' में अपने भाषण की शुरुआत उन्होंने 'बहनों और भाइयों' कहकर की। इस शुरुआत से ही सभी के मन में बदलाव हो गया, क्योंकि पश्चिम में सभी 'लेडीस एंड जेंटलमैन' कहकर शुरुआत करते हैं, किंतु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गए।अमेरिका मे ही एक प्रसंग उनके साथ घटित होता है अक्‍सर हमारे साथ होता है कि विपत्ति के साथ माथे पर हाथ रख देते है किन्‍तु विवेकानंद जी की जीवन की घटानाऍं प्रेरक प्रसंग का काम करती है। प्रसंग यह था‍ कि
अमेरिका मे एक महिला ने उनसे शादी करने की इच्छा जताई, जब स्वामी विवेकानंद ने उस महिला से ये पूछा कि आप ने ऐसा ऐसा चाहती है ? उस महिला का उत्तर था कि वो स्‍वामी जी की बुद्धि से बहुत मोहित हैऔर उसे एक ऐसे ही बुद्धिमान बच्चे कि कामना है। इसलिए वह स्वामी से ये प्रश्न कि क्या वो उससे शादी कर सकते है और उसे अपने जैसा एक बच्चा दे सकते हैं? स्‍वामी जी ने महिला से कहा कि चूँकि वो सिर्फ उनकी बुद्धि पर मोहित हैं इसलिए कोई समस्या नहीं है। उन्होंने कहा प्रिये महिला, मैं आपकी इच्छा को समझता हूँ, शादी करना और इस दुनिया में एक बच्चा लाना और फिर जानना कि वो बुद्धिमान है कि नहीं, इसमें बहुत समय लगेगा इसके अलावा ऐसा हो इसकी गारंटी भी नहीं है कि बच्‍चा बुद्धिमान ही हो इसके बजाय आपकी इच्छा को तुरंत पूरा करने हेतु मैं आपको एक उपयुक्‍त सुझाव दे सकता हूँ.। आप मुझे अपने बच्चे के रूप में स्वीकार कर लें, इस प्रकार आप मेरी माँ बन जाएँगी और इस प्रकार मेरे जैसे बुद्धिमान बच्चा पाने की आपकी इच्छा भी पूर्ण हो जाएगी।
निश्चित रूप से स्‍वामी जी जैसे व्‍यक्तित्‍व के बताये मार्ग पर चलना जरूरी है, ताकि भारत की गौरवशाली परम्‍परा पर हम अनंत काल तक गौरवान्वित हो सके।

बुधवार, 5 जनवरी 2011

होली आई! होली आई!

होली आई होली आई
पिचकारी के सपने लाई

भूल भाल कर सारे वैर
फगवा खेलें सब मिल भाई
धरती दुल्हन सी लगती है
अबीर ने ली है अंगड़ाई

होली आई होली आई
पिचकारी के सपने लाई

गुल्ले खाओ गुझिया खाओ
मिल कर खाओ खूब मिठाई
चौटाल गाओ फगवा गाओ
पिचकारी ने धूम मचाई

होली आई होली आई
पिचकारी के सपने लाई

एकाग्रता सफलता की कुंजी


गुरू द्रोणाचार्य एक बार अपने शिष्‍यों को धनुष विधा की परीक्षा लेने हेतु जंगल में ले गये। एक पेड पर मिट्रटी की बनी एक चिडिया रखी गयी और शिष्‍यों से कहा गया कि आपको चिडिया की ऑख पर तीर से निशाना लगाना हैं।
     जो विधार्थी निशाना लगाने आत, गुरूजी उससे पूछते आपको क्‍या दि खाई दे रहा है तो शिष्‍य बताते चिडिया के साथ साथ पेड के पत्‍ते आदि दि ख रहे हैं। इस प्रकार बताने वाले शिष्‍यों में से एक भी शिष्‍य नि शाना लगाने में सफल नहीं हुआ अन्‍त में अर्जुन की बारी आई। गुरूजी ने अर्जुन से पूछा। आपको क्‍या दि खाई दे रहा है। अर्जुन ने कहा गुरूजी मुझे केवल चिडिया की ऑख दि खाई दे रही है। अर्जुन ने नि शाना लगाया, तीर चिडिया की आंख में लगा । यह अर्जुन की एकाग्रता थी इसी एकाग्रता के कारण अर्जुन विश्‍व विख्‍यात धनुधर बना
अत सफलता प्राप्‍त करने के लिए एकाग्रता का होना जरूरी है।