अब सुभाष अँगरेजों को भारत से खदेड़ने व भारत को स्वतंत्र कराने का आत्मसंकल्प ले, चल पड़े राष्ट्रकर्म की राह पर। आईसीएस की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद सुभाष ने आईसीएस से इस्तीफा दिया। इस बात पर उनके पिता ने उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- 'जब तुमने देशसेवा का व्रत ले ही लिया है, तो कभी इस पथ से विचलित मत होना।'
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16 मार्च 1939 को सुभाष ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। सुभाष ने आजादी के आंदोलन को एक नई राह देते हुए युवाओं को संगठित करने का प्रयास पूरी निष्ठा से शुरू कर दिया। इसकी शुरुआत 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर में 'भारतीय स्वाधीनता सम्मेलन' के साथ हुई। 5 जुलाई 1943 को 'आजाद हिन्द फौज' का विधिवत गठन हुआ। 21 अक्टूबर 1943 को एशिया के विभिन्न देशों में रहने वाले भारतीयों का सम्मेलन कर उसमें अस्थायी स्वतंत्र भारत सरकार की स्थापना कर नेताजी ने आजादी प्राप्त करने के संकल्प को साकार किया।
12 सितंबर 1944 को रंगून के जुबली हॉल में शहीद यतीन्द्रदास के स्मृति दिवस पर नेताजी ने अत्यंत मार्मिक भाषण देते हुए कहा- 'अब हमारी आजादी निश्चित है, परंतु आजादी बलिदान माँगती है। आप मुझे खून दो, मैं आपको आजादी दूँगा।' यही देश के नौजवानों में प्राण फूँकने वाला वाक्य था, जो भारत ही नहीं विश्व के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
16 अगस्त 1945 को टोक्यो के लिए निकलने पर ताइहोकु हवाई अड्डे पर नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और स्वतंत्र भारत की अमरता का जयघोष करने वाला, भारत माँ का दुलारा सदा के लिए, राष्ट्रप्रेम की दिव्य ज्योति जलाकर अमर हो गया।
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