“गुरू द्रोणाचार्य एक बार अपने शिष्यों को धनुष विधा की परीक्षा लेने हेतु जंगल में ले गये। एक पेड पर मिट्रटी की बनी एक चिडिया रखी गयी और शिष्यों से कहा गया कि आपको चिडिया की ऑख पर तीर से निशाना लगाना हैं।
जो विधार्थी निशाना लगाने आत, गुरूजी उससे पूछते आपको क्या दि खाई दे रहा है तो शिष्य बताते चिडिया के साथ साथ पेड के पत्ते आदि दि ख रहे हैं। इस प्रकार बताने वाले शिष्यों में से एक भी शिष्य नि शाना लगाने में सफल नहीं हुआ अन्त में अर्जुन की बारी आई। गुरूजी ने अर्जुन से पूछा। आपको क्या दि खाई दे रहा है। अर्जुन ने कहा गुरूजी मुझे केवल चिडिया की ऑख दि खाई दे रही है। अर्जुन ने नि शाना लगाया, तीर चिडिया की आंख में लगा । यह अर्जुन की एकाग्रता थी इसी एकाग्रता के कारण अर्जुन विश्व विख्यात धनुधर बना”
अत सफलता प्राप्त करने के लिए एकाग्रता का होना जरूरी है।
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